Wednesday, 15 July 2015

तुम्हारा साथ

तुम्हारा साथ 


तुम होती हो साथ तो सिर्फ़ आती है मेरे लिये सुहानी शाम,
होता है चाँद ग़ुलाम मेरा करते है सितारेभी मेरा इंतज़ाम.

धड़कने जवाँ होती है और तुम्हारे साँसोंसे भरते है मेरे जाम,
बहती है साकी मेरे नज़रोंसे चाहें फिर कुछभी हो अंजाम.

खिलते है नज़ारे गुलिस्ताँके करते है फुलभी तुम्हें सलाम,
समाँ हो जाता रंगीन शबनमको मिलता है तुम्हारा मका़म.

उम़ड आते है अश्क़ खुशीसे रंज और ग़म होते है बेनाम,
बेताबीयाँ दुर होती है और बादल तनहायीके होते है गुमनाम.

बना लेते है तुम्हें मल्लिका अपनें जहाँकी लेते है तुमसे प्यारका इनाम,
सरपे फीर चढ़ जाता है जादु मोहोब्बतका बन जाते है हम ग़ुलाम.

छिड़ जाती है बीना मनकी बजाने तर्ज़ प्यारकी सरेंशाम,
भड़क जाती है ठंडी आग फीरभी होता है दिलको आराम.

                                                                                      प्रसाद कर्पे 

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