Friday 14 August 2015

चलकर राहपे उल्फतकी

चलकर राहपे उल्फतकी 

चलकर राहपे उल्फतकी मिटाना चाहता हुँ मेरी उलझनोंकी पतवार,
मिटाकर हर मुश्कील चाहता हुँ तुम्हे अपनाना सरेबाजार.

भड़काना है शोलोंको छोड़कर जजबातोंको तुम्हारे द्वार,
भिगोना है तुम्हें प्यारकी बरसातमे होकर दिवानोंका सरताज़.

करना चाहता हुँ निसार सारे दुनियाकी ख़ुशियाँ तुमपर आज,
सदाबहार तुम्हारी हसींको रखना है उम्रभर ऐसेही बर्करार.

सुनानी है तुम्हें ग़ज़लें प्यारभरी भरकर आगोंशमें तुम्हें बार बार,
लिखनी है प्यारभरी शायरी अपनाकर तुम्हें मेरी जानेबहार.

चाहता हुँ लुटाना दिल बिठाकर मुरत तुम्हारी आखोंमे हर बार,
हर मोसम तुम्हारा करना है सुहाना सजाकर तुम्हारी माँग.

देखने है सपनें सायेंमें आँचलके तुम्हारे छोड़कर सब दारोमदार,
ढलती लटोंको तुम्हारे है सवाँरना करके चेहरेका तुम्हारे दिदार.

कदमोंमे तुम्हारी डालकर मेरी ज़िंदगी सौंपना है तुम्हें मेरा प्यार,
करके रुखसत दुनियासें लेनी है पनाह दिलमें तुम्हारे मेरे यार.

                                                                      प्रसाद कर्पे 

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