Tuesday 4 August 2015

हुआ हुँ बहोत जखमी

हुआ हुँ बहोत जखमी


हुआ हुँ बहोत जखमी मैं इस बेगैरत दुनियाके जा़लिम सितमोंसे,
फिरभी मरहम बस तुम्हारे बातोंका है काफ़ी उन्हे भरनेके लिये.

ठोकरें अनगिनत खाया हुँ मैं मेरे अपनोंकी राहोंसे गुज़रते,
अब साथ बस चाहीये तुम्हारा जिंदगीकी राह चलनेके लिये.

नकारा गया हुँ ना जाने कितनोंसे इस जुल्मी जहाँमें,
बस एक हाँ तुम्हारी है काफ़ी फीरसे दिये आँखोंके जलानेके लिये .

कुचला गया है दिल मेरा ना जाने कितनी बार प्यारकी राहमें,
अब दामन तुम्हारा चाहिये मुझे दास्ताँ मेरी बयाँ करनेके लिये.

नालायक क़रार कर दिया गया हुँ इस इन्सानोंके इज्तेमांमे जिनेके लिये ,
बस चाहीये प्यार तुम्हारा जिंदगी बस्र करनेके लिये.

थक गया हुँ मैं इतना बार बार खुदको साबित करते करते,
के चाहीये मुझे हरवक्त दिदार तुम्हारा  सुकुन पानेके लिये.



बस इतनी इल्तजा है के इम्तिहान ना लेना तुम प्यारका मेरे,
तुम्हारा हि था तुम्हारा हुँ तुम्हारा हि रहुँगा सदा के लिये.

                                                                        प्रसाद कर्पे 

No comments:

Post a Comment