इस रंजिशेभरी दुनियामे तलाश है मुझे सुकुनकी,
विरान मेरे जहॅांको है ख्वाईशें शबनमके ओसोंकी.
हर मंझर आजमाया कि उनपे बौछार दस्तकोंकी,
है इल्तजा एकही के ये भी दुनिया ना हो सुनी सुनीसी.
एक ही मकाम चाहियें अब के थम जाये ये मुसाफिरी,
तलाश दिलके अरमानोंकी सदियोंके लिये हो जाये पुरी.
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